Tally Prime एकाउंटिंग के मूलभूत सिद्धान्त
टैली प्राइम में यदि आप पहली बार काम कर रहे हैं और आपका विषय कभी एकाउंटिंग नहीं रहा है तो आपको इस अध्याय से एकाउंटिंग की वह बुनियादी जानकारी प्राप्त होगी जिससे आप एकाउंटिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकेंगे। टैली प्राइम में सरलता पूर्वक कार्य करने के लिये एकाउटिंग के मूल सिद्धान्तों का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है।
प्रत्येक व्यापार में, चाहे वह किसी भी स्तर का हो लेन-देन से जुड़े ट्राजेंक्शनों की संख्या इतनी ज्यादा होती है जिन्हें याद रखना किसी भी व्यक्ति के लिए असंभव सा प्रतीत होता है। इस परेशानी से बचने के लिए लोग प्रतिदिन के लेन-देनों या सौंदों को डेट वाइज तथा क्रमानुसार लिखते हैं।
इस तरह लेन-देनों का किताबों में नियमानुसार एकाउंटिंग करने के भविष्य में किसी तरह की गलती नहीं हो सकती। इसके अलावा, व्यापार का पूर्णतः लेखा-जोखा रखने से प्रत्येक को यह ज्ञात होता रहता है कि उसके व्यापार की आर्थिक स्थिति कैसी चल रही है, व्यापार की संपत्ति एवं देनदारियों कितनी हैं और उसे किसको क्या देना है, और किससे क्या लेना है, उसे कितना लाभ या घाया हुआ है आदि। यह पूर्ण जानकारी उचित और वैज्ञानिक ढंग से हिसाब-किताब रखे बिना प्राप्त नहीं हो सकती।
एक निश्चित सिस्टम के अनुसार कुछ निश्चित किताबों में व्यापारिक लेन-देनों का विधिवत खाता लिखने की कला ही एकाउंटिंग लेजर कहलाती है। अंग्रेजी भाषा का शब्द बुक कीपिंग दो शब्द से मिलकर बना है, बुक और कीपिंग। बुक का अर्थ है किताब और कीपिंग का अर्थ है रखना।
साधारण भाषा में बुक कीपिंग का शाब्दिक अर्थ है किताबों को रखना, लेकिन यह इसका वास्तविक अर्थ नहीं है। इसमें यह नहीं सिखाया जाता कि हिसाब-किताब की किताबों को किस तरह की अलमारियों में या दराजों में रखा जाता है।
बुक कीपिंग के कुछ खास नियम हैं जिनके आधार पर एकाउंटिंग करके प्रत्येक व्यक्ति, व्यापार संबंबंधी समस्त तथ्यों की जानकारी बड़ी सरलता से किसी भी समय प्राप्त कर सकता है।
बुक कीपिंग वह विज्ञान है जिसके द्वारा व्यापारिक लेन-देन का स्थाई एकाउंटिंग शुद्ध स्पष्ट तथा वैज्ञानिक विधि से उचित किताबों में इस तरह लिया जाता है कि उनसे संबंधित समस्त विवरण तथा व्यापार की आर्थिक स्थिति किसी भी समय तथा जल्दी से ज्ञात हो जाए। बुक कीपिंग वह विज्ञान एवं कला है जिसके अनुसार व्यापार के समस्त लेन-देन, क्रय-विक्रय, आय-खर्च एवं लाभ-घाटा को नियमानुसार निश्चित एकाउंटिंग किताबों में लिखा जाता है।
बुक कीपिंग के मूल तत्त्व (Fundamentals of Book Keeping)
बुक कीपिंग में इन मूल तत्त्वों का समावेश होता है-
- इसका प्रयोग सभी तरह के व्यापारियों द्वारा किया जाता है।
- इसके अंतर्गत समस्त व्यापारिक लेन-देन को लिखा जाता है। भले ही वह क्रय-विक्रय, आय-खर्च अथवा लाभ-हानि से संबंधित हों।
- लेने-देनों के मौद्रिक रूप का लेखा तय नियमों के अनुसार किया जाता है।
- किताबों में लिखा करने का प्रमुख उद्देश्य यह ज्ञात करना होता है कि व्यापार में लाभ हुआ अथवा हानि, व्यापारी को किस क्या लेना है एवं किसको कितना देना है, उसकी संपत्तियों व दायित्व कितनी है तथा व्यापार की आर्थिक स्थिति कैसी है।
अकाउंटेंसी का अर्थ (Meaning of Accounting)
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है, एकाउंटेंसी व्यापार के वित्तीय व्यवहारों को नियमित लेजर एकाउंटों में लिखने, वर्गीकरण करने एवं परिणाम निकालने का विज्ञान है जिससे किसी भी समय बाहा व्यक्तियों से लेन-देन, वर्ष भर में प्राप्त लाभ-घाटा एवं एक निश्चित अवधि के अंत में व्यापार की आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो सके और अनके परिणामों से उचित निष्कर्ष निकाले जा सकें।
एकाउंटेंसी के फंक्शन (Function of Accounting)
एकाउंटेंसी के यह कार्य हैं
- व्यापार में हुए आय-खर्च एवं लाभ-हानि की गणना करना।
- व्यावसायिक लेन-देनों का लिखना।
- व्यापारी को उसके व्यवसाय की आर्थिक स्थिति बताना।
- उत्पादक संस्था के संगठनात्मक ढांचे में समन्वयता स्थापित करना।
- व्यावसायिक कार्यकुशलता की माप करना।
- जन उपयोगी संस्थाओं में दर, किराया एवं भाड़ा व कर आदि का निर्धारण करना।
- तथ्यात्मक सूचनाओं को प्रस्तुत करना, जिससे श्रम संबंधी विवादों को हल करने में सरलता रहे।
एकाउंटिंग का उद्देश्य (Reason of Accounting)
बुक कीपिंग एकाउंटेंशी का मुख्य उद्देश्य व्यापारियों को अपने व्यापार के संबंध में निम्न बातों का वास्तविक ज्ञान कराना होता है।
- खरीद-फरोख्त का ज्ञान बुक कीपिंग के द्वारा ही अनेकों किताबें रखकर व्यापारी यह जानकारी प्राप्त कर सकता है कि वर्ष भर में उसने कितना माल खरीदा तथा कितना माल बेचा और वर्ष के अंत में कितना माल उसके पास शेष बचा। माल की मात्रा एवं माल की कीमत का भी ज्ञान होता है।
- रकम की सही जानकारी-बुक कीपिंग के द्वारा व्यापारी अपनी रकम का सही ज्ञान प्रापत कर सकता है। कैश की किताबों के द्वारा उसको यह पता चल जाता है कि वर्ष के आरंभ में उसके पास कितनी रकम नकद थी तथा कितनी बैंक में जमा थी। वर्ष के अंत में कितनी रकम उसके पास नकद है तथा कितनी रकम बैंक में जमा है, इसका भी ज्ञान होता है।
- केपिटल का सही ज्ञान-इससे व्यापारी यह ज्ञात कर सकता है कि वर्ष के प्रारंभ में उसने कितनी केपिटल व्यापार में लगाई तथा वर्ष के अंत में वह कितनी हो गई है अर्थात प्रारंभिक केपिटल में कितनी कमी या बढ़ोत्तरी हो गई है।
- मुनाफे घाटे का ज्ञान व्यापारी, व्यापार खाता एवं लाभ घाटा एकाउंट बनाकर यह ज्ञात कर सकता है कि उसे व्यापार में लाभ हो रहा है अथवा घाटा तथा शुद्ध लाभ अथवा घाटा की रकम कितनी है।
- संपत्तियों एवं दायित्वों की जानकारी-वर्ष के अंत में आर्थिक चिट्ठा बनाकर व्यापारी यह ज्ञात कर सकता है कि वर्ष के अंत में उसकी संपत्तियां तथा दायित्व कितने हैं।
- देनदारों तथा लेनदारों के संबंध में जानकारी-बुक कीपिंग के द्वारा व्यापारी यह ज्ञात करता है कि उसे देनदारों से कितनी रकम प्राप्त करनी है तथा लेनदारों को कितनी रकम देनी है।
- इनकम और खर्च के बारे में सही जानकारी-बुक कीपिंग के द्वारा व्यापारी यह जान सकता है कि उसे व्यापार में किस मद से कितनी आय प्राप्त हो रही है तथा किस मद पर कितना खर्च हो रहा है, वर्ष के अंत में कितनी आय प्राप्त करनी बाकी है तथा कितना खर्च देना बाकी है।
- टैक्स संबंधी जानकारी-व्यापारी को प्रतिवर्ष अनेक तरह के टैक्स देने होते हैं, जैसे-आयकर, विक्रीकर एवं उत्पादन-कर आदि। कर-निर्धारण से संबंधित सूचनाएं प्राप्त करने हेतु भी व्यापारी को बुक कीपिंग की जरूरत होती है, जिनके आधार पर विभिन्न प्रकार के करों का निर्धारण किया जा सकता है।
बुक कीपिंग के लाभ (Benefits of Book Keeping)
बुक कीपिंग के लाभ (Benefits of Book Keeping) बुक कीपिंग तथा एकाउंटेंसी व्यापारियों, उपभोक्ताओं, सरकार तथा अन्य पक्षों को विभिन्न लाभ होते हैं-
- व्यापारिक गलती से बचाव-किसी मनुष्य की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र नहीं होती कि वह प्रतिदिन होने वाले प्रत्येक लेन-देन को याद रख सके। अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक लेन-देन को लिखकर रखा जाए जिससे कि जरूरत के समय उसे देखा जा सके। बुक कीपिंग में हिसाब-किताब का लेखा होने से भविष्य में होने वाली गलतियों से बचा जा सकता है।
- व्यापार का आर्थिक स्थिति का ज्ञान-कोई भी व्यापारी हिसाब-किताबों में नियमित रूप से एंट्री करने पर ही अपने व्यापार के प्रॉफिट और लॉस का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। वह यह भी ज्ञात कर सकता है कि उसकी संपत्ति, दायित्व एवं देनदारियां कितनी हैं।
- व्यापार के मूल्यांकन में सुविधा-व्यापार का मूल्यांकन करने की आवश्यकता प्रायः व्यापार को बेचते समय या शेयर बाजार में उतरते समय होती है। व्यापार के खरीददार या शेयर धारक को पिछले दो अथवा तीन वर्षों के एकाउंट दिखाकर उसे व्यापार की सही आर्थिक स्थिति स्पष्ट की जा सकती है तथा विक्रेता सही मूल्य प्राप्त कर सकता है।
- दिवालिया हो जाने पर शीघ्र फैसला-यदि कोई व्यापार लगातार घाटे पर चलता है तो ऐसे व्यापार का स्वामी अपनी लेखा किताबों को न्यायालय में दिखाकर स्वयं को दिवालिया घोषित करा सकता है। उचित तरह से रखे गए हिसाब-किताब को देखकर ही न्यायालय यह निर्णय करता है कि वास्तव में व्यापारी की देनदारी उसकी संपत्ति एवं लेनदारी से ज्यादा है और उसे दिवालिया घोषित किया जा सकता है।
- टैक्स का सही निर्धारण ज्यादातर व्यापायिों को अपनी आय पर आयकर, उत्पादन पर उत्पादन टैक्स तथा बिक्री पर बिक्रीकर देना होता है। यदि उसने अपनी आय खर्च तथा क्रय-विक्रय को सही दर्ज किया है तो टैक्स अधिकारी उस पर अधिक टैक्स नहीं लगा सकेंगे, तथा व्यापारी को अतिरिक्त टैक्स नहीं देना होगा।
- कर्ज की वसूली में सुविधा-सही तरह से लिखा-जोखा रखकर एक व्यापारी न्यायालय की मदद से अपने ऋणों की वसूली सरलतापूर्वक कर सकता है।
- नियोजन व पूर्वानुमान में सुविधा नियमित रूप से रखे गए हिसाब-किताब के द्वारा ही व्यापारी आगामी वर्षों के लिए अपने आय-खर्च, क्रय-विक्रय, संपत्ति व दायित्व आदि के पूर्वानुमान लगा सकता है तथा अपने व्यापार के भावी विकास की योजनाएं बना सकता है।
- शीघ्र निर्णय में सहायक व्यापारी को दिन-प्रतिदिन कुछ न कुछ मामलों के संबंध में शीघ्र निर्णय लेने होते हैं। सही निर्णय उचित एंट्रियों के आधार पर ही संभव हैं।
- उचित बिक्री मूल्य सही एवं पूर्ण लेखों की मदद से वस्तु का लागत मूल्य ज्ञात किया जाता है, जिसके आधार पर उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
- ठगे जाने का भय न होना-इसके द्वारा उपभोक्ताओं को वस्तुओं के लागत मूल्य का ज्ञान हो जाता है, इससे उसे वस्तु के क्रय में ठगे जाने का भय नहीं होता है।
- सरकार को लाभ फाइनेंशियल मदद निर्धारण में सहायक सरकार व्यवसायों को उसके द्वारा रखे गए एकाउंटिंग के रखरखाव के आधार पर ही फाइनेंशियल मदद देती है।
- देश की व्यावसायिक व औद्योगिक स्थिति का ज्ञान बुक कीपिंग के आंकड़ों के द्वारा सरकार को देश की व्यावसायिक व औद्योगिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।
- राष्ट्रीयकरण में सहायक बुक कीपिंग के आंकड़ों से प्राप्त सूचनाओं से सरकार को विभिन्न व्यावसायिक इकाइयों का राष्ट्रीयकरण में मदद मिलती है।
- अन्य लाभ-बुक कीपिंग तथा फाइनेंशियल एकाउंटिंग के अध्ययन से व्यवसाय के विनियोगताओं, लेनदारों तथा अन्य सभी को लाभ होता है।
सही अकाउंटिंग सिस्टम की विशेषताएं (features of correct accounting)
एकाउंटिंग की एक आदर्श सिस्टम में इन विशेषताओं का होना आवश्यक है
- अकाउंटिंग सिस्टम को सरल एवं स्पष्ट होना चाहिए ताकि एक साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति भी उसे भली भांति तथा सरलता पूर्वक समझ सके।
- अकाउंटिंग सिस्टम में किसी भी खाते को देखने एवं समझने में ज्यादा समय ना लगे।
- एकाउंटिंग सिस्टम स्वच्छ एवं स्पष्ट होना चाहिए। यदि एकाउंटिंग में स्थान-स्थान पर काट-छांट होती है तो ऐसी पुस्तकें न्यायालय में मान्य नहीं होतीं।
- यदि एकाउंटिंग से जुड़ी किताबें पूर्ण नहीं है तो उनसे व्यापार की स्थिति का सही ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। इस तरह बुक-कीपिंग के उद्येश्यों की भी पूर्ति नहीं हो सकती, अतः एकाउंटिंग सिस्टम अपने में पूर्ण होना चाहिए।
- आदर्श एकाउंटिंग सिस्टम के नियम एवं सिद्धांत सुनिश्चित होने चाहिएं ताकि उनके संबंध में कोई गलतफहमी उत्पन्न न
हो सके। - एकाउंटिंग सिस्टम कम खर्चीली होनी चाहिए, जिससे कि छोटे-से-छोटे व्यापारी भी उसे सरलता से अपना सके।
- आदर्श एकाउंटिंग सिस्टम का लचीला होना आवश्यक है, ताकि व्यापार में वृद्धि होने के साथ-साथ उसका भी विस्तार किया जा सके और व्यापार घटने की दशा में उसमें कमी की जा सके।
एकाउंटिंग के प्रकार (Types of Accounting)
जिन सिद्धांतों के अनुसार किसी व्यवसाय एवं उद्योग के कार्यकलापों का अकाउंटिंग किया जाता है उनको इन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- फाइनेंशियल एकाउंटिंग (Financial Accounting)- फाइनेंशियल एकाउंटिंग में व्यापार के समस्त दैनिक मौद्रिक लेन-देनों का साधारण लेखों द्वारा एकाउंटिंग की जाती है तथा खाते तैयार किए जाते हैं। इन खातों के द्वारा एक निश्चित समय के बाद बैलेंस शीट को तैयार किया जाता है और अंतिम खाते बनाए जाते हैं। ये एकाउंट, कैश सिस्टम, सिंगल एंट्री एकाउंटिंग सिस्टम, डबल एंट्री एकाउंटिंग सिस्टम या भारतीय लेजर एकाउंटिंग सिस्टम के अनुसार तैयार किए जाते हैं।
- कॉस्ट एकाउंटिंग (Cost Accounting)-यह फाइनेंशियल एकाउंटिंग का एक ऐसा भाग है जिसमें उद्योग संबंधी उत्पादन तथा व्यावसायिक कार्यों में प्रयुक्त हाने वाले कच्चे माल व श्रम तथा इन पर होने वाले व्यय का वैज्ञानिक एवं नियमित रूप से खाता तैयार किया जाता है। इससे कास्ट एकाउंटिंग उत्पादित वस्तुओं या सेवाओं की कुल लागत के अलावा प्रति इकाई लागत भी पता चलती है। इनके माध्यम से मौद्रिक रूप से तथा मात्रा, दोनों के आधार पर जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस तरह की एकाउंटिंग उत्पादकों तथा ठेकेदारों द्वारा की जाती है।
- मैनेजमेंट एकाउंटिंग (Management Accounting)-मैनेजमेंट एकाउंटिंग कास्ट एकाउंटिंग की अगली सीढ़ी है। इसके अंतर्गत एकाउंटेंशी संबंधी सूचना इस तरह से प्रस्तुत की जाती है कि मैनेजमेंट को नीति-निर्धारण करने तथा उनके दैनिक कार्यों को सही ढंग से संचालन में मदद मिल सके।
- टैक्स एकाउंटिंग (Tax Accounting) केंद्रीय व राज्य सरकारों द्वारा अनेकों तरह के टैक्स लगाए जाते हैं, जैसे-आयकर, बिक्रीकर व उत्पादन टैक्स आदि। इन सभी टैक्सों के निर्धारण की अलग-अलग व्यवस्था है। टैक्स एकाउंटिंग में समस्त टैक्स विधानों के प्रावधानों के अनुसार अलग-अलग ढंग से खाते तैयार किए जाते हैं।
- क्वांटीटेटिव एकाउंटिंग (Quantitative Accounting)-इस एकाउंटिंग में एंट्री करने का आधार मौद्रिक न होकर वस्तुओं के परिणामों से संबंधित होता है। इस तरह के खाते फाइनेन्शियल कास्ट तथा मैनेजमेंट एकाउंटिंग में सहायक होते हैं और सही निर्णय पर पहुंचने के लिए सही सूचनाएं प्रदान करते हैं। इनका उद्देश्य व्यापारिक वस्तुओं के क्रय-विक्रय तथा शेष पारिमाणिक सूचनाएं प्राप्त करना है।
- सरकारी एकाउंटिंग (Governmental Accounting)-सरकारी अर्द्ध, सरकारी एवं स्वायत्त संस्थाओं द्वारा जो एकाउंटिंग की जाती है वह सरकारी एकाउंटिंग कहलाती है।
एकाउंटिंग के व्यवहारिक सिस्टम (Fundamental System of Accounting)
आधुनिक युग वैज्ञानिक एवं विशिष्टीकरण का युग है। यदि इसे उद्योगों और व्यापार की उन्नति का युग भी कह दिया जाए. तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रत्येक व्यवसायी तथा उद्योगपति को पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वे यह जानने की प्रबल इच्छा रखते हैं कि पूरे वर्ष की सभी संपूर्ण गतिविधियों का एक निश्चित परिणाम क्या है. जिससे एक निश्चित समय के बाद लाभ अथवा घाटा तथा आर्थिक स्थिति का ज्ञान हो सके। वर्तमान समय में बुक कीपिंग निम्नलिखित प्रणालियां प्रचलित हैं
- सिंगल एंट्री सिस्टम यह सिस्टम प्राचीनकाल में अत्यधिक प्रचलन में था। जबकि वर्तमान समय में इसका प्रयोग केवल नाममात्र के लिए हो रह गया है। इस सिस्टम के अंतर्गत व्यापारी के स्वयं से संबंधित समस्त लेन-देनों के केवल एक ही हिस्से की एंट्री की जाती है। टैली प्राइम में सिंगल एंट्री सिस्टम का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- डबल एंट्री सिस्टम – यह एक वैज्ञानिक सिस्टम है तथा वर्तमान समय में इसे सर्वोत्तम सिस्टम माना जाता है। (टैली प्राइम में से ही प्रयोग किया जाता है) यही एक मात्र ऐसा एंट्री सिस्टम है जिसके द्वारा आंटियों के समस्त उद्देश्यों की पूर्ति कर पाना संभव होता है। इस एंट्री सिस्टम के जन्मदाता इटली के लुकास पैसियोली थे। डबल एंट्री सिस्टम का तात्पर्य प्रत्येक व्यापारिक लेनदेन को अलग-अलग व्यापारिक किताबों में दो स्थान पर लिखना है डबल एंट्री सिस्टम में प्रत्येक लेनदेन को दो भिन्न-भिन्न अकाउंट में लिखकर डबल एंट्री पूरी की जाती है। एक एंट्री उसे अकाउंट में जो वस्तु धन अथवा सेवाएं प्राप्त करता है और दूसरी उसे अकाउंट में जो वस्तु धन अथवा सेवाएं प्रदान करता है।
- भारतीय एकाउंटिंग पद्धति-इस एंट्री सिस्टम की उत्पत्ति भारतवर्ष में होने के कारण ही इसे भारतीय एकाउटिंग पद्धति कहते हैं। यह पद्धति एक सरल एवं वैज्ञानिक पद्धति है। इसमें हिसाब-किताब लंबी-लंबी बहिखातों में हिंदी या अन्य प्रादेशिक भाषाओं में रखा जाता है। यह पद्धति डबल एकाउंटिंग पद्धति पर आधारित है।
- कैश सिस्टम यह सिस्टम प्रायः उसी दशा में प्रयोग किया जाता है जब समस्त लेन-देन नकदी होते हैं। इसका प्रयोग प्रायः गैर-व्यापारिक संस्थाओं जैसे क्लब, अस्पताल, शिक्षण संस्थाओं एवं धमार्थ संस्थाओं द्वारा किया जाता है।
डबल एंट्री सिस्टम का सिद्धांत (Principles of Double Entry System)
डबल एंट्री सिस्टम इस सिद्धांत पर आधारित है, कि प्रत्येक व्यापारिक लेन-देन के दो पक्ष होते हैं। पहला, पाने वाला और दूसरा देने वाला। दोनों पक्षों के बिना किसी भी तरह का लेन-देन संभव नहीं है, क्योकि बिना पाने वाले के, देने वाले कुछ दे नहीं सकता और बिना देने वाले के, पाने वाला कुछ पा नहीं सकता। डबल एंट्री सिस्टम के निम्नलिखित तीन सिद्धांत हैं-
- प्रत्येक लेन-देन का प्रभाव कम-से-कम दो एकाउंटों पर पड़ना।
- प्रत्येक एकाउंट में एक दूसरे के विपरीत प्रभाव होना अर्थात यदि एक एकाउंट में रकम जोड़ी जा रही है, तो दूसरे एकाउंट से वह रकम घटाई जानी चाहिए।
- एंट्री के दोनों पक्षों में समान धन का प्रभाव होना।
डेबिट और क्रेडिट (Debit and Credit)
डेबिट शब्द लैटिन भाषा के शब्द डेबिटम से बना है। जिसका अर्थ है-उनसे देय। इसी प्रकार क्रेडिट शब्द लैटिन भाषा के शब्द क्रेडर से बना है. जिसका अर्थ है-उसको देय। फाइनेंशियल एकाउंटिंग में इन दोनों शब्दों का प्रयोग बहुतायत में होता है।