PGDCA Assignment Computer Network and Internet 10 answers in Hindi awesome

PGDCA Assignment Computer Network and Internet 10 answers in Hindi



PGDCA Assignment Computer Network and Internet

Q.1 Computer Network क्या है? नेटवर्क के प्रकार को विस्तार करें।

Computer Network: कंप्यूटर नेटवर्क एक संरचना है जिसमें दो या दो से अधिक कंप्यूटर और अन्य उपकरण एक दूसरे से जुड़े होते हैं। ये उपकरण डेटा, सूचना, और संसाधनों का आदान-प्रदान करने की क्षमता रखते हैं। नेटवर्क का मुख्य उद्देश्य संचार को सरल बनाना, संसाधनों को साझा करना और डेटा को प्रभावी रूप से प्रसारित करना है।

नेटवर्क के प्रकार:

  1. LAN (Local Area Network):
    • विवरण: यह एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र (जैसे एक ऑफिस, स्कूल, या घर) में फैला होता है।
    • विशेषताएँ: उच्च डेटा ट्रांसफर गति (100 Mbps से लेकर 10 Gbps तक) और कम लागत।
    • उदाहरण: Ethernet, Wi-Fi।
  2. WAN (Wide Area Network):
    • विवरण: यह बड़े भौगोलिक क्षेत्रों (जैसे विभिन्न शहरों या देशों) को कवर करता है।
    • विशेषताएँ: डेटा को लंबी दूरी पर भेजने की क्षमता, लेकिन कम गति (कुछ Mbps से लेकर Gbps तक)।
    • उदाहरण: इंटरनेट, MPLS (Multiprotocol Label Switching)।
  3. MAN (Metropolitan Area Network):
    • विवरण: यह एक शहर या एक बड़े स्थान के भीतर फैला होता है।
    • विशेषताएँ: LAN और WAN के बीच का नेटवर्क, सामान्यतः शहरों के बीच उच्च गति डेटा ट्रांसफर के लिए।
    • उदाहरण: शहर के विभिन्न सरकारी कार्यालयों के लिए नेटवर्क।
  4. PAN (Personal Area Network):
    • विवरण: यह व्यक्तिगत उपकरणों के बीच डेटा साझा करने के लिए उपयोग किया जाता है।
    • विशेषताएँ: सीमित दूरी (लगभग 10 मीटर) और छोटे उपकरणों के लिए आदर्श।
    • उदाहरण: Bluetooth कनेक्शन, व्यक्तिगत कंप्यूटर और स्मार्टफोन के बीच।
  5. VPN (Virtual Private Network):
    • विवरण: यह एक सुरक्षित नेटवर्क है जो सार्वजनिक नेटवर्क (इंटरनेट) के माध्यम से एक निजी नेटवर्क की तरह कार्य करता है।
    • विशेषताएँ: डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करता है, संवेदनशील जानकारी को एन्क्रिप्ट करता है।
    • उदाहरण: कार्यस्थल के लिए घर से सुरक्षित कनेक्शन।

Q.2 ATM को समझाइए? ATM किस प्रकार से नेटवर्क पर कार्य करता है।

ATM (Asynchronous Transfer Mode): ATM एक नेटवर्किंग तकनीक है जो डेटा को छोटे, समान आकार के पैकेट्स (सेल्स) में विभाजित करती है। यह एक स्विचिंग तकनीक है जो विभिन्न प्रकार के डेटा (जैसे आवाज, वीडियो, और डेटा) को एक ही नेटवर्क पर भेजने की अनुमति देती है।

ATM नेटवर्क पर कार्य करने का तरीका:

  • डेटा पैकेटिंग: ATM में डेटा को 53-बाइट सेल्स में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक सेल में 5-बाइट हेडर और 48-बाइट डेटा होता है।
  • उच्च बैंडविड्थ: यह समर्पित बैंडविड्थ प्रदान करता है, जिससे उच्च गति डेटा ट्रांसफर संभव होता है। उदाहरण: 155 Mbps से लेकर 622 Mbps तक।
  • गुणवत्ता सेवा (QoS): ATM विभिन्न प्रकार के ट्रैफिक के लिए गुणवत्ता सेवा की गारंटी देता है, जैसे कि वीडियो स्ट्रीमिंग और वॉयस कॉल्स।
  • स्वचालित रूटिंग: ATM नेटवर्क पैकेट्स को तेजी से रूट करता है, जिससे कम लेटेंसी और उच्च विश्वसनीयता मिलती है।

Q.3 निम्न को समझाइए:

  • Analog and Digital Signal:
    • Analog Signal:
      • यह एक निरंतर संकेत होता है, जो समय के साथ परिवर्तित होता है। यह प्राकृतिक दुनिया के भौतिक संकेतों (जैसे ध्वनि, तापमान) का प्रतिनिधित्व करता है।
      • उदाहरण: FM रेडियो, जिसमें सिग्नल एक लहर के रूप में होता है।
    • Digital Signal:
      • यह बाइनरी डेटा (0 और 1) में होता है। यह अधिक स्थिर और विश्वसनीय होता है, विशेषकर डेटा ट्रांसमिशन के लिए।
      • उदाहरण: कंप्यूटर डेटा, जहाँ जानकारी को बाइनरी में प्रस्तुत किया जाता है।
  • Baseband and Broadband Transmission:
    • Baseband Transmission:
      • इसमें एक समय में केवल एक सिग्नल भेजा जाता है। इसे आमतौर पर छोटे नेटवर्क में उपयोग किया जाता है।
      • विशेषता: सभी बैंडविड्थ उसी सिग्नल के लिए उपयोग होती है। उदाहरण: Ethernet।
    • Broadband Transmission:
      • इसमें एक ही माध्यम पर कई सिग्नल्स को एक साथ भेजा जा सकता है। यह उच्च गति डेटा ट्रांसफर के लिए उपयुक्त होता है।
      • विशेषता: विभिन्न बैंडविड्थ का उपयोग कई सिग्नल्स के लिए किया जाता है। उदाहरण: DSL, केबल इंटरनेट।

Q.4 OSI Model तथा इसके लेयर को विस्तार करें।

OSI Model (Open Systems Interconnection Model): OSI मॉडल एक मानक है जो विभिन्न नेटवर्क प्रोटोकॉल के बीच संचार को मानकीकृत करता है। इसमें 7 लेयर होती हैं:

  1. Physical Layer:
    • यह भौतिक माध्यम के माध्यम से डेटा ट्रांसमिशन का प्रबंधन करता है। इसमें इलेक्ट्रिकल सिग्नल, वोल्टेज स्तर, कनेक्टर और केबल प्रकार शामिल होते हैं।
    • कार्य: डेटा का भौतिक ट्रांसमिशन।
  2. Data Link Layer:
    • यह डेटा को फ्रेम में समाहित करता है और त्रुटि सुधार के लिए जिम्मेदार होता है। इसमें MAC एड्रेसिंग और फ्रेमिंग की प्रक्रिया शामिल है।
    • कार्य: डेटा का पैकेट बनाना और त्रुटियों को ठीक करना।
  3. Network Layer:
    • यह डेटा पैकेट्स को स्रोत से गंतव्य तक पहुँचाने का कार्य करता है। इसमें रूटिंग और लॉजिकल एड्रेसिंग (जैसे IP एड्रेस) की प्रक्रिया शामिल है।
    • कार्य: पैकेट्स का रूटिंग और भेजना।
  4. Transport Layer:
    • यह डेटा को छोटे भागों में बाँटता है और सुनिश्चित करता है कि सभी भाग सही क्रम में पहुँचें। यह डेटा की अखंडता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है।
    • कार्य: डेटा ट्रांसफर का प्रबंधन करना (TCP/UDP)।
  5. Session Layer:
    • यह संचार सत्रों का प्रबंधन करता है। इसमें सत्रों को स्थापित करना, बनाए रखना, और समाप्त करना शामिल है।
    • कार्य: संचार सत्रों का प्रबंधन।
  6. Presentation Layer:
    • यह डेटा को एन्कोड और डिकोड करता है और मानव-समझने योग्य रूप में प्रस्तुत करता है। यह डेटा की प्रारूपण और संपीड़न का भी कार्य करता है।
    • कार्य: डेटा का प्रारूप बदलना (जैसे ASCII, JPEG)।
  7. Application Layer:
    • यह उपयोगकर्ता एप्लिकेशन के साथ सीधा इंटरफ़ेस प्रदान करता है, जैसे HTTP, FTP, SMTP, आदि। यह उपयोगकर्ता के अनुकूल इंटरफेस उपलब्ध कराता है।
    • कार्य: अंतिम उपयोगकर्ता के लिए सेवाएँ प्रदान करना।

Q.5 Transmission media से आप क्या समझते हैं? विस्तार से समझाइए।

Transmission Media: यह वह माध्यम है जिसके माध्यम से डेटा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचता है। इसे मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. Guided Media (लक्षित माध्यम):
    • इसमें डेटा को एक निश्चित पथ पर भेजा जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की केबल्स आती हैं:
      • Twisted Pair Cable:
        • उपयोग: आमतौर पर LAN में।
        • विशेषता: कम लागत, मध्यम गति, और आमतौर पर RJ-45 कनेक्टर का उपयोग।
      • Coaxial Cable:
        • उपयोग: टीवी सिग्नल और पुराने नेटवर्क में।
        • विशेषता: उच्च बैंडविड्थ और स्थिरता।
      • Optical Fiber:
        • उपयोग: उच्च गति डेटा ट्रांसमिशन के लिए।
        • विशेषता: लंबी दूरी पर उच्च गति, कम संकेत ह्रास।
  2. Unguided Media (अलक्षित माध्यम):
    • इसमें डेटा हवा या खाली स्थान में प्रसारित होता है। इसके अंतर्गत:
      • Radio Waves:
        • उपयोग: वायरलेस संचार (जैसे मोबाइल फोन)।
        • विशेषता: लंबी दूरी, लेकिन कम बैंडविड्थ।
      • Microwave:
        • उपयोग: उच्च गति संचार।
        • विशेषता: सीधी रेखा में संचारित होती हैं और अक्सर सैटेलाइट संचार में उपयोग होती हैं।
      • Infrared:
        • उपयोग: छोटे दूरी के लिए, जैसे रिमोट कंट्रोल।
        • विशेषता: सीधी रेखा में संचारित होती हैं और दीवारों से गुजर नहीं सकतीं।

Q.6 Network के Switching technique क्या है?

Switching Techniques: ये तकनीकें नेटवर्क में डेटा को भेजने के लिए उपयोग होती हैं। प्रमुख प्रकार हैं:

  1. Circuit Switching:
    • विवरण: इसमें डेटा ट्रांसफर के लिए एक स्थायी मार्ग सेट किया जाता है। यह टेलीफोन नेटवर्क में सामान्यतः उपयोग होता है, जहाँ कॉल के लिए एक निश्चित पथ स्थापित होता है।
    • विशेषताएँ: उच्च गुणवत्ता का आवाज संचार, लेकिन नेटवर्क संसाधनों की बर्बादी।
  2. Packet Switching:
    • विवरण: इसमें डेटा को छोटे पैकेट्स में विभाजित किया जाता है, और ये पैकेट्स स्वतंत्र रूप से नेटवर्क पर यात्रा करते हैं। यह अधिक कुशल और लचीला होता है।
    • विशेषताएँ: डेटा की उच्च विश्वसनीयता, लेटेंसी में कमी। उदाहरण: TCP/IP प्रोटोकॉल।
  3. Message Switching:
    • विवरण: इस तकनीक में संपूर्ण संदेश को पहले स्टोर किया जाता है और फिर इसे आगे भेजा जाता है। इसमें कोई स्थायी कनेक्शन नहीं होता है।
    • विशेषताएँ: यह नेटवर्क पर ट्रैफ़िक को व्यवस्थित करने में सहायक होता है, लेकिन लेटेंसी अधिक हो सकती है।

Q.7 Network Layer में प्रयोग होने वाले Routing algorithm के बारे में लिखिए?

Routing Algorithms: ये एल्गोरिदम नेटवर्क पर डेटा पैकेट्स के लिए सर्वोत्तम मार्ग निर्धारित करते हैं। प्रमुख प्रकार हैं:

  1. Static Routing:
    • विवरण: इसमें रूट स्थिर होते हैं और नेटवर्क में परिवर्तन नहीं होते हैं। इसे मैन्युअल रूप से सेट किया जाता है।
    • उदाहरण: सरल नेटवर्कों में, जहाँ परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती।
  2. Dynamic Routing:
    • विवरण: रूटिंग जानकारी स्वचालित रूप से अपडेट होती है। यह नेटवर्क की स्थिति के अनुसार रूट को समायोजित करता है।
    • उदाहरण: RIP (Routing Information Protocol), OSPF (Open Shortest Path First)।
  3. Distance Vector Algorithm:
    • विवरण: यह प्रत्येक राउटर को अपने पड़ोसी राउटर से दूरी और दिशा की जानकारी प्रदान करता है।
    • उदाहरण: RIP, जिसमें राउटर अपनी रूटिंग तालिका को पड़ोसी राउटर के साथ साझा करता है।
  4. Link State Algorithm:
    • विवरण: यह प्रत्येक राउटर को पूरे नेटवर्क की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करने की अनुमति देता है और सर्वोत्तम मार्ग निर्धारित करता है।
    • उदाहरण: OSPF, जो सभी राउटरों के लिंक की स्थिति को साझा करता है।

Q.8 निम्न को समझाइए:

  • SMTP (Simple Mail Transfer Protocol):
    • यह ईमेल भेजने के लिए उपयोग होने वाला प्रोटोकॉल है। SMTP सर्वर ईमेल संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजता है। यह सामान्यतः TCP पोर्ट 25 पर कार्य करता है। इसे ईमेल क्लाइंट से ईमेल सर्वर और एक ईमेल सर्वर से दूसरे ईमेल सर्वर तक संदेश भेजने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • FTP (File Transfer Protocol):
    • यह फ़ाइलों को नेटवर्क पर स्थानांतरित करने के लिए उपयोग किया जाने वाला प्रोटोकॉल है। FTP एक क्लाइंट-सर्वर आर्किटेक्चर पर काम करता है, जहाँ क्लाइंट फ़ाइलों को सर्वर से डाउनलोड या सर्वर पर अपलोड कर सकता है। यह TCP पोर्ट 21 पर कार्य करता है।
  • HTTP (Hypertext Transfer Protocol):
    • यह वेब पृष्ठों को सर्वर से ब्राउज़र तक भेजने के लिए उपयोग होने वाला प्रोटोकॉल है। HTTP संचार को सर्वर और क्लाइंट के बीच स्थापित करता है, जिससे वेब ब्राउज़िंग संभव होती है। यह TCP पोर्ट 80 पर कार्य करता है। HTTPS (HTTP Secure) सुरक्षित संचार के लिए उपयोग होता है।
  • DNS (Domain Name System):
    • यह डोमेन नामों को आईपी एड्रेस में परिवर्तित करने के लिए उपयोग होने वाली प्रणाली है। जब आप किसी वेबसाइट का नाम (जैसे www.example.com) ब्राउज़र में दर्ज करते हैं, DNS इसे संबंधित आईपी एड्रेस (जैसे 192.0.2.1) में परिवर्तित करता है ताकि ब्राउज़र वेबसाइट से जुड़ सके।

Q.9 Cryptography को समझाइए? Symmetric तथा Asymmetric Key Cryptography के बारे में लिखिए।

Cryptography: यह डेटा को सुरक्षित करने की प्रक्रिया है, जिससे डेटा को unauthorized पहुँच से बचाया जा सके। यह डेटा की गोपनीयता, अखंडता, और प्रमाणीकरण को सुनिश्चित करता है। क्रिप्टोग्राफी का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि वित्तीय लेन-देन, गोपनीय संचार, और डेटा संरक्षण।

  • Symmetric Key Cryptography:
    • इसमें एक ही कुंजी का उपयोग करके डेटा को एन्क्रिप्ट और डिक्रिप्ट किया जाता है। यह प्रक्रिया तेज होती है और इसमें कम संसाधनों की आवश्यकता होती है। हालांकि, कुंजी को सुरक्षित तरीके से साझा करना आवश्यक होता है।
    • उदाहरण: AES (Advanced Encryption Standard), DES (Data Encryption Standard)। इन तकनीकों में एक साझा कुंजी का उपयोग किया जाता है।
  • Asymmetric Key Cryptography:
    • इसमें दो कुंजियाँ होती हैं: एक सार्वजनिक (Public Key) और एक निजी (Private Key)। डेटा को सार्वजनिक कुंजी से एन्क्रिप्ट किया जाता है और निजी कुंजी से डिक्रिप्ट किया जाता है। यह अधिक सुरक्षित है, क्योंकि निजी कुंजी केवल धारक के पास होती है।
    • उदाहरण: RSA (Rivest–Shamir–Adleman)। इसमें सार्वजनिक कुंजी का उपयोग डेटा को एन्क्रिप्ट करने के लिए किया जाता है, और निजी कुंजी को डिक्रिप्ट करने के लिए रखा जाता है।

Q.10 Digital Signature से आप क्या समझते हैं? DSS Approach को समझाइए।

Digital Signature: यह एक क्रिप्टोग्राफिक तकनीक है जो डेटा की पहचान और सुरक्षा सुनिश्चित करती है। यह एक प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर होता है, जो दस्तावेजों की सत्यता और स्रोत की पहचान को प्रमाणित करता है। डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि वित्तीय लेन-देन, संविदाएँ, और अन्य कानूनी दस्तावेज।

DSS (Digital Signature Standard): यह एक मानक है जो डिजिटल हस्ताक्षरों के निर्माण और मान्यता के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है। DSS में SHA (Secure Hash Algorithm) का उपयोग किया जाता है, जो डेटा की अखंडता सुनिश्चित करता है। DSS की प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम शामिल होते हैं:

  1. हैशिंग:
    • दस्तावेज़ को हैशिंग एल्गोरिदम के माध्यम से एक अद्वितीय हैश मान में परिवर्तित किया जाता है।
  2. एन्क्रिप्शन:
    • हैश मान को डिजिटल हस्ताक्षर बनाने के लिए निजी कुंजी का उपयोग करके एन्क्रिप्ट किया जाता है।
  3. सत्यापन:
    • रिसीवर दस्तावेज़ और हस्ताक्षर को सत्यापित करने के लिए सार्वजनिक कुंजी का उपयोग करता है। यदि हैश मान मेल खाता है, तो दस्तावेज़ की अखंडता और स्रोत की पहचान प्रमाणित होती है।

DSS का उपयोग सुरक्षा के लिए किया जाता है, जिससे दस्तावेज़ों की असलियत और स्वीकृति सुनिश्चित होती है।

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